धार्मिक एवं
सांस्कृतिक गतिविधियां

भजनमण्डली

6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में रामलला को मंदिर (अस्थाई) में स्थापित किया गया था। अगले वर्ष शौर्य दिवस (6 दिसम्बर 1993) पर जनजाति समाज में परम्परागत रूप से चलने वाली भजन मंडलियों का सामूहिक कार्यक्रम एवं धर्म सभा का आयोजन किया गया। इसके बाद से प्रतिवर्ष 6 दिसम्बर को स्थानीय संतो के सानिध्य में धर्म सभा एवं सामूहिक भजनमण्डली का कार्यक्रम बांसवाडा परियोजना के वार्षिकोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है, जिसमें लगभग 15000 से 20000 जनजाति समाज (वनवासी) के स्त्री-पुरुष और नवयुवक उत्साह पूर्वक भाग लेते है। लगभग 650 भजनमण्डली भारत माता मंदिर बासवाडा से जुडी हुई है, वर्ष में एक बार इन भजन मण्डली के प्रमुखों (कोटवाल) का एक दिवसीय सम्मेलन होता है।

गणेशोत्सव

इस क्षेत्र का अधिकतर जनजाति समाज (वनवासी) हिन्दू धर्म के मनाये जाने वाले परम्परागत् उत्सव नहीं मनाता था। अतः अनभिज्ञता के कारण अपने हिन्दू धर्म के प्रति स्वाभिमान का भाव नहीं होने के कारण ईसाई मिशनरीज इनको आसानी से समझाने में सफल हो जाते थे कि वह लोग हिन्दू नही हैं, और फिर उनको सरलता से प्रलोभन देकर ईसाई बनाने का कार्य कर रहे थे। इसलिये वर्ष 1996 में योजना पूर्वक शहरी क्षेत्रों में मंदिरों (गणेशमण्डल बनाकर) के माध्यम से और ग्रामीण क्षेत्र में विद्यालयों व प्रवासी कार्यकर्ताओं के माध्यम से सामूहिक गणेशोत्सव के आयोजन प्रारम्भ किये गये और इसके लिये गणेशजी की छोटी-बड़ी प्रतिमायें अहमदाबाद (गुजरात) से मंगवाकर क्षेत्र में उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई। आठ साल के प्रयत्नों के बाद शहरों और गावों में हिन्दू समाज द्वारा स्वतः ही सामूहिक गणेश स्थापना की जाने लगी, और गणेश विसर्जन के कार्यक्रमों में हजारों की संख्या में लोग उत्साह पूर्वक भाग लेने लगे, और गणेशोत्सव इस क्षेत्र के सम्पूर्ण हिन्दू समाज का प्रमुख उत्सव हो गया। गणोशोत्सव की सामाजिक स्वीकार्यता एवं लोकप्रियता के कारण जिला प्रशासन द्वारा गणेश विसर्जन के दिन स्थानीय अवकाश घोषित किया जाता है। गणेशोत्सव कार्यक्रमों में अब भारत माता मंदिर (बांसवाडा परियोजना) की संरक्षक एवं मार्गदर्शक की भूमिका है।

लघु गणेश स्थापना

सांस्कृतिक व धार्मिक आस्थाओं के प्रति जनजाति समाज (वनवासी) के परिवारों में दृढ़ता हो इसलिये पदयात्राओं के माध्यम से गांव गांव में लोगों से बातचीत की और उनको हिन्दुओं के प्रथम पूज्य देव गणेश जी की महत्ता के बारे में बताया गया और घर पर गणेश जी की मूर्ति या चित्र रखने के लिये आग्रह किया गया। पद यात्राओं के माध्यम से लगभग 250 गांवों में 9560 घरों के (अधिकतर जनजाति समाज के) मुख्य द्वार पर या घर के अन्दर पत्थर निर्मित 6 इंच के लघु गणेश की स्थापना कराई गई। धीरे -धीरे जनजाति समाज में अपने घरों में गणेश जी व अन्य देवताओं के चित्र रखने की परम्परा बढ़ती जा रही है ।

एक गांव - एक मंदिर

क्षेत्र में जनजाति समाज (वनवासी) के लोग परम्परागत रूप से अपने पूर्वजों – की याद में चीरे (पत्थर पर मनुष्यों की आकृति) जमीन में गाढते है, और इन चीरों की ही पूजा करते है। जनजाति समाज के बंधुओं को बताया गया कि आपके गांव में भी शहरों व अन्य गांवो की तरह ही गांव का एक मंदिर होना चाहिये, और उस मंदिर में सामूहिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होने चाहिये । “एक गांव एक मन्दिर” योजना के क्रियान्वयन के लिये वर्ष 2007 में हनुमान जी की (साढ़े तीन फीट ऊचांई के) 500 मूर्तियों बनवाई। कार्यकताओं के सतत् प्रयास से गांव-गांव में जनजाति समाज के बंधु मंदिर बनाने का निर्णय करने लगे है। अक्टूबर 2016 तक 437 गांवो में हनुमान जी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। कई स्थानों पर मंदिर निर्माण भी हो गये है। इन मंदिरों में साप्ताहिक सुन्दरकाण्ड, भजनमण्डली व अन्य धार्मिक कार्यक्रम होते है। चैत्र माह की नवरात्री (रामनवमी) के अवसर पर इन मंदिरों में सामूहिय रामोत्सव के आयोजन होने लगे हैं।

माही माता पूजन

मध्यप्रदेश के धार जिले से निकलने वाली माही नदी इस जनजाति (बांसवाडा एवं डूंगरपुर) में बहने वाली सबसे बड़ी नदी है। इस क्षेत्र का सम्पूर्ण हिन्दू समाज माही नदी को गंगा नदी की तरह पवित्र मानता है। माही नदी के त्रिवेणी संगम (माही, सोम, जाखम नदी) पर स्थिति “बेणेश्वर धाम” पर प्रति वर्ष माघ माह की पूर्णिमा के दिन लाखों जनजाति समाज (वनवासी) के बन्धु अपने पूर्वजों का तर्पण करने के लिये पिण्डदान करने आते है।

माही नदी पर एक बड़ा बांध बना है जिससे बिजली उत्पादन के साथ ही एक लाख हैक्टेय भूमि में सिंचाई होती है, सिचाई सुविधा उपलब्ध हो जाने के कारण क्षेत्र में कृषकों की आर्थि | स्थिति काफी अच्छी हुई है।

माही नदी की इसी महत्ता को ध्यानमें रखकर वर्ष 2005 में माही नदी के किनारे मंदिर का निर्माण कर उसमें माही माता की मूर्ति की प्रतिष्ठा कर नियमित पूजना अर्चना व्यवस्था की गई। गंगादशहरा के दिन प्रतिवर्ष इस मंदिर में माही माता पूजन का कार्य आयोजित होता है। इस अवसर पर माही नदी की 125 कि.मी की परिक्रमा (वाहनों द्व 1.00 कि.मी लम्बी कलश यात्रा, धर्मसभा और भंडारा (सामूहिक भोजन) होता है। इस का में हजारों की संख्या में हिन्दू समाज (अधिकतम वनवासी) श्रद्धा के साथ भाग लेता है।

यज्ञ अनुष्ठान

जनजाति समाज (वनवासी) के प्रत्येक व्यक्ति के मन में धर्म की भावन अधिक मजबूत हो और उन्हें अपने हिन्दू धर्म पर स्वाभिमान (गर्व) हो इसके लिये वह निल अर्चना करें, इस विचार के क्रियान्वयन के लिये वर्ष 2015 में तीन चरणों में (41 दिन, 1 और 6 दिन की) “यज्ञ अनुष्ठान यात्रा” आयोजित की गई । 478 गांवों में हवन (य कार्यक्रमों में 53281 जनजाति समाज (वनवासी) के स्त्री, पुरुष और बच्चों ने यज्ञ में अ दी। सभी यज्ञ कार्यक्रमों को विधि विधान से सम्पन्न कराने की कार्यवाही जनजाति समाज के युवकों द्वारा ही करवाई गई। बांसवाडा परियोजना द्वारा क्षेत्र में संचालित विद्यालयों में महीने की पहली एकादशी को विद्यालय परिवार एवं ग्रामवासी मिलकर सामूहिक हवन (यज्ञ) करते हैं। कृष्णजन्माष्टमी पर विद्यालयों में कृष्ण सजाओं प्रतियोगिता एवं दही हाण्डी (मटकी फोड़ के कार्यक्रम आयोजित होते है। इन कार्यक्रमों से प्रेरित होकर जनजाति समाज के लगभग 40 गांवो में दही हाण्डी (मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाने लगा है।

भागवत कथा व रामकथा

हिन्दू संस्कृति में संतो का एक विशिष्ट स्थान है, हिन्दू समाज संतो के गुणदोषों को देखे बिना उन पर अपनी श्रद्धा रखता है, और यह हिन्दू समाज का एक वैशिष्टय भी है। राष्ट्रीयता, धार्मिकता व सामाजिक समरसता के उद्देश्यों से अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में साध्वी ऋतम्भरा जी, विजयकौशल जी महाराज, छोटे मुरारी बापू, हरिओमशरणदास जी महाराज एवं स्थानीय संतो के श्रीमुख से भागवत और रामकथा के आयोजन किये गये । इन कथाओं में 5000 से 25000 स्त्री पुरूषों की उपस्थिति रहती थी। सामाजिक समरसता के लिये वह प्रयोग काफी सफल रहा है।

गौशाला

जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ को प्रारम्भ से ही बताया जाता रहा है कि हिन्दू समाज गाय को गौ माता इसलिये मानता है कि वह हमारे परिवार के लालन-पालन के लिये उपयोगी है। गाय का बछडा (बैल) खेती के काम आता है, स्वास्थवर्धक दूध के अलावा गाय का गोबर और मूत्र भी चिकित्सा के लिये उपयोगी है, इसलिये गाय हमारे परिवार का महत्वपूर्ण आर्थिक आधार है। इसको समझाने के उद्देश्य से कार्यकर्ताओं और क्षेत्र के जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ को अपने संगठनों द्वारा संचालित गौशालाओं में ले जाकर प्रत्यक्ष दिखाया जाता है कि गाय के दूध, दही और घी से होने वाली आय और गाय के गोबर से बायो गैस एवं खाद के अतिरिक्त अगरबत्ती, साबुन, गौअर्क इत्यादि उपयोगी सामग्री बनाकर परिवार की आय बढ़ा सकता है। वर्ष 2015 में बांसवाडा परियोजना द्वारा बांसवाडा जिले के मुनियांखूटा गांव में एक गौशाला प्रारंभ की गई है और इसको गौ उत्पादन की प्रयोगशाला के रूप में विकसित करने की योजना है, ताकि इस क्षेत्र के अधिकतम वनवासी बंधु इस गौशाला में आकर प्रत्यक्ष रूप से गाय के महत्व को समझ सके, और गोपालन कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सके।

भारत माता मंदिर निर्माण

भारत माता मंदिर बांसवाडा इस क्षेत्र के जनजाति समाज (वनवासी) एवं सम्पूर्ण हिन्दू समाज का श्रद्धा का केन्द्र बनता जा रहा है, भविष्य में यह सम्पूर्ण हिन्दू समाज का प्रमुख श्रद्धा केन्द्र व मार्गदर्शन का केन्द्र बनें, इसके लिये प.पू.सत्यमित्रानन्द जी महाराज द्वारा हरिद्वार में स्थापित भारत माता मंदिर की शैली में मंदिर बनाने की योजना पर कार्य प्रारम्भ किया है। इस मंदिर में हिन्दुओं के आराध्य देवों, महापुरूषों, मातृशक्ति के साथ ही जनजाति समाज (वनवासी) के संत एवं समाज सुधारको को प्रतिष्ठापित किया जायेगा।