एक दृष्टि में

बाँसवाड़ा परियोजना

राजस्थान के इस जनजाति बहुल क्षेत्र में चल रही इन अलगाववादी साजिशों को खत्म करने का लक्ष्य लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उस जनजाति (वनवासी) बन्धु की झोंपडी तक पहुंचने का निश्चय किया, जो वर्षो से आर्थिक एवं शैक्षणिक स्तर पर पिछडा हुआ था, और सामाजिक रूप से भी उपेक्षित था।

गतिविधियां

शैक्षणिक

संस्था द्वारा निर्धारित शिक्षण पद्धति से बालकों में संस्कार और अच्छे परीक्षा परिणाम के फलस्वरूप जनजाति समाज में विद्यालयों की प्रतिष्ठा बढ़ने के कारण क्षेत्र में विद्यालयों की संख्या तेज गति से बढ़ रही है।

कार्य की आवश्यकता

चर्च की विश्व के ईसाईकरण की योजना के अंतर्गत अंग्रेजों के कालखण्ड में चर्च ने भारत में भी मिशनरीज के माध्यम से शिक्षा से वंचित, गरीबी में जीवन यापन करने वाले जनजाति समाज का चिकित्सा और सेवा के नाम का मुखौटा लगाकर धोखा और प्रलोभन देकर धर्मान्तरण का कार्य प्रारम्भ कर दिया था। राजस्थान के अनुसूचित जनजाति (वनवासी) बहुल जिले बांसवाडा, डूंगरपुर, प्रतापगढ एवं उदयपुर में भी ईसाई पादरियों द्वारा एन.जी.ओ के माध्यम से प्राप्त विदेशी पैसों का लालच एवम् धोखा देकर जनजाति समाज (वनवासी) का धर्मान्तरण किया जा रहा था। जनजाति बहुल इस क्षेत्र में नक्सलाइट गतिविधियां भी तीव्र गति से बढने लगी थी।

अस्सी के दशक में ईसाई मिशनरीज एवं नक्सलवादीयों द्वारा राजस्थान राज्य के बांसवाडा, डूंगरपुर उदयपुर, प्रतापगढ, मध्यप्रदेश राज्य के रतलाम, झाबुआ, धार व अलीराजपूर एवं गुजरात राज्य के दाहोद, पंचमहल व छोटा उदयपुर जिलों (जनजाति बहुल जिले) में अलगाववाद का जहर घोल कर अलग भीलस्तान राज्य की मांग की जाने लगी थी।

धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां

भजनमण्डली

6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में रामलला को मंदिर (अस्थाई) में स्थापित किया गया था। अगले वर्ष शौर्य दिवस (6 दिसम्बर 1993) पर जनजाति समाज में परम्परागत रूप से चलने वाली भजन मंडलियों का सामूहिक कार्यक्रम एवं धर्म सभा का आयोजन किया गया।

गणेशोत्सव

1996 में योजना पूर्वक शहरी क्षेत्रों में मंदिरों (गणेशमण्डल बनाकर) के माध्यम से और ग्रामीण क्षेत्र में विद्यालयों व प्रवासी कार्यकर्ताओं के माध्यम से सामूहिक गणेशोत्सव के आयोजन प्रारम्भ किये गये और इसके लिये गणेशजी की छोटी-बड़ी प्रतिमायें अहमदाबाद (गुजरात) से मंगवाकर क्षेत्र में उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई।

लघु गणेश स्थापना

सांस्कृतिक व धार्मिक आस्थाओं के प्रति जनजाति समाज (वनवासी) के परिवारों में दृढ़ता हो इसलिये पदयात्राओं के माध्यम से गांव गांव में लोगों से बातचीत की और उनको हिन्दुओं के प्रथम पूज्य देव गणेश जी की महत्ता के बारे में बताया गया |

एक गांव - एक मंदिर

क्षेत्र में जनजाति समाज (वनवासी) के लोग परम्परागत रूप से अपने पूर्वजों - की याद में चीरे (पत्थर पर मनुष्यों की आकृति) जमीन में गाढते है, और इन चीरों की ही पूजा करते है।

माही माता पूजन

माही नदी के त्रिवेणी संगम (माही, सोम, जाखम नदी) पर स्थिति "बेणेश्वर धाम" पर प्रति वर्ष माघ माह की पूर्णिमा के दिन लाखों जनजाति समाज (वनवासी) के बन्धु अपने पूर्वजों का तर्पण करने के लिये पिण्डदान करने आते है।

यज्ञ अनुष्ठान

जनजाति समाज (वनवासी) के प्रत्येक व्यक्ति के मन में धर्म की भावन अधिक मजबूत हो और उन्हें अपने हिन्दू धर्म पर स्वाभिमान (गर्व) हो इसके लिये वह निल अर्चना करें, इस विचार के क्रियान्वयन के लिये वर्ष 2015 में तीन चरणों में (41 दिन, 1 और 6 दिन की) “यज्ञ अनुष्ठान यात्रा” आयोजित की गई ।

भागवत कथा व रामकथा

हिन्दू संस्कृति में संतो का एक विशिष्ट स्थान है, हिन्दू समाज संतो के गुणदोषों को देखे बिना उन पर अपनी श्रद्धा रखता है, और यह हिन्दू समाज का एक वैशिष्टय भी है।

गौशाला

जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ को प्रारम्भ से ही बताया जाता रहा है कि हिन्दू समाज गाय को गौ माता इसलिये मानता है कि वह हमारे परिवार के लालन-पालन के लिये उपयोगी है।

भारत माता मंदिर निर्माण

प.पू.सत्यमित्रानन्द जी महाराज द्वारा हरिद्वार में स्थापित भारत माता मंदिर की शैली में मंदिर बनाने की योजना पर कार्य प्रारम्भ किया है। इस मंदिर में हिन्दुओं के आराध्य देवों, महापुरूषों, मातृशक्ति के साथ ही जनजाति समाज (वनवासी) के संत एवं समाज सुधारको को प्रतिष्ठापित किया जायेगा।

पूर्वाचल में बांसवाड़ा परियोजना

वर्ष 2002 में अखिल भारतीय बैठक में पूर्वाचल के कार्यकर्ताओं के माध्यम से जानकारी में आया कि मिजोरम में रहने वाले MANIPUR रियांग (आदिवासी) समाज के लगभग 70000 लोगों को चर्च (ईसाई) द्वारा उत्पन्न की गई समस्याओं के कारण मिजोरम छोड़ना पड़ा, और उनको त्रिपुरा और आसाम राज्यों में विस्थापित कैम्पों में अपने परिवार के साथ रहना पड़ रहा है, इनके बच्चों की पढाई छूट गई है।

इस बातचीत में से सत्र 2003-04 में नॉर्थ त्रिपुरा के विस्थापित केम्पों में रह रहे रियांग जनजाति के 14 बालक/बालिकायें पढ़ाई करने के लिये बांसवाडा आये। इसके बाद से प्रति वर्ष विस्थापित केम्पों में रहने वाले रियांग जनजाति समाज के बच्चों के अतिरिक्त पूर्वाचल से अन्य जनजाति समाज (रियांग, चकमा, त्रिपुरी, देववर्मन) के बच्चों का भी पढ़ाई करने के लिये बासंवाडा परियोजना में आने का क्रम जारी है।

  • प्राथमिक विद्यालय विस्थापित कॅम्प शांतिपाड़ा नॉर्थ त्रिपुरा
  • प्राथमिक विद्यालय विस्थापित कॅम्प आसापाड़ा नॉर्थ त्रिपुरा
  • आवासीय विद्यालय करमसरा, जिला धलाई त्रिपुरा
  • आवासीय विद्यालय करमसरा, जिला धलाई का छत्रावास

बांसवाड़ा परियोजना ... एक दृष्टि में

 

 

आयाम

राजस्थान

(बासवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, उदयपुर)

 

पूर्वांचल

(त्रिपुरा, मिजोरम, आसाम, मेघालय)

 

संख्या

लाभान्वित

संख्या

लाभान्वित

उच्च माध्यमिक विद्यालय

21

5723

-

-

माध्यमिक विद्यालय

17

4016

-

-

उच्च प्राथमिक विद्यालय

88

7212

-

-

प्राथमिक विद्यालय

172

6428

97

5365

वेद विद्यालय

2

23

-

-

छात्रावास

11

367

1

27

योग

311

23769

98

5392

प्रवासी कार्यकर्ता

52

-

33

-

कुल कार्यकर्ता

1372

-

166

-

भजन मण्डली

650

25000

-

-

गांवों से सम्पर्क

1810

 

 

375

एक गांव - एक मंदिर

448 गाँवों में

-

-

-

संस्कृति दीक्षा

गत 26 वर्षों से

48000 लगभग

 

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