योजनाबद्ध रूप से जनजाति समाज (वनवासी) के गांवों में सम्पर्क कर उन समझाया जाता है कि वह अपने बच्चों का भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं तो उसे पढ़ाना आवश्यक है और इसके लिये योजना पूर्वक 12 वीं तक पढाई पूर्ण कर चुके नवयुवकों के माध्यम से छोटे-छोटे गांवो में प्राथमिक स्तर के विद्यालय शुरू किये। संस्था द्वारा निर्धारित शिक्षण पद्धति से बालकों में संस्कार और अच्छे परीक्षा परिणाम के फलस्वरूप जनजाति समाज में विद्यालयों की प्रतिष्ठा बढ़ने के कारण क्षेत्र में विद्यालयों की संख्या तेज गति से बढ़ रही है।
वर्ष 2016-17 में बांसवाड़ा परियोजना द्वारा संचालित मान्यता प्राप्त विद्यालयों की संख्या 34 (सीनियर सैकेण्डरी 21, सैकण्डरी 17, अपर प्रायमरी 88 और प्रायमरी 217) हो गई। इ विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र/छात्राओं की संख्या लगभग 30000 है। आचार्यों (टीचर्स) की सख 1385 है। 52 पूर्णकालिक प्रवासी कार्यकर्ता हैं, जो क्षेत्र में सतत् प्रवास करते है। बांसवा परियोजना में कार्यरत 90 प्रतिशत कार्यकर्ता वनवासी है।
विद्यालयों के विस्तार के साथ ही योजनापूर्वक क्षेत्र चिन्हित कर जनजाति समाज (वनवासी) के छात्र/छात्राओं के लिए छात्रावास भी प्रारम्भ किये गये। वर्तमान में एक बालिका छात्रावास सहित कुल 30 छात्रावासों में कक्षा 4 से पोस्ट ग्रेजूएट स्तर के 403 छात्र-छात्रायें रहकर अपनी पढाई कर रहे है।
श्रद्धेय स्व. अशोक जी सिंहल की इच्छा थी कि जनजाति समाज (वनवासी) के बालक वेद के ज्ञाता के रूप में वेदपाठी बनें, अतः उनकी इच्छानुसार गोकुलम् के कुशाग्र बालकों का चयन कर जुलाई 2015 में भारत माता मंदिर बांसवाडा में महर्षि बाल्मीकी वेद विद्यालय प्रारम्भ किया गया । जनजाति समाज (वनवासी) में स्वाभिमान का भाव जागृत करने के उद्देश्य से 2016 में वेद विद्यालय में अध्ययनरत बाप एवं रिश्तेदारों की उपस्थिति में किया गया। वर्तमान में 40 भैया (सभी वनवासी) अपनी सामान्य पढाई के साथ ही श्रेष्ठ आचार्यों के मार्गदर्शन में वेदों का भी विधिवत अध्ययन कर रहे हैं ।
“गोकुलम” बासंवाडा परियोजना की एक अतिमहत्वाकांक्षी एवं अद्भुत योजना है। आनुपातिक रूप से जनसंख्या असन्तुलन के कारण देश पर आने वाले भावी संकट को ध्यान में रखकर 6 दिसम्बर 2012 को आयोजित भजन मंडली एवं धर्म सभा में संतो ने उपस्थिति जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओं एंव माताओं को विषय की गम्भीरता बताकर आव्हान किया कि हिन्दू समाज के प्रत्येक मां बाप चार से अधिक संतानों को जन्म दे, और इनमें से एक संतान माँ-बाप द्वारा बालक को गोद देते हुए (बालक) धर्म के काम के लिये राष्ट्र को समर्पित करें। समाज इन बालकों की अच्छी परवरिश करेगा शिक्षा देकर योग्य एवं भारत माता का श्रेष्ठ पुत्र बनायेंगा । इसके कियान्वयन के लिये श्रध्देय 2012 में बय स्व. अशोक जी सिंहल की उपस्थिति में पहला “गोकुलम्” (बालक को गोद की प्रक्रिया कार्यक्रम हुआ । इसके बाद से प्रतिवर्ष “गोकुलम्” का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जुलाई 2016 तक “गोकुलम्” योजना में 158 भैया बांसवाडा परियोजना संचालित छात्रावासों में रहकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। प्रशिक्षण और विशेष देखरेख के कारण गोकुलम के 12 भैया अपनी पढाई के साथ साथ संगठन के कार्य में सहयोग प्रदान करने सने हैं। चार साल के अनुभव के बाद कहा जा सकता है कि यह प्रयोग आशा से अधिक सफल हुआ है।