कार्य का परिणाम

संस्कृति दीक्षा

वर्ष द्वारा वर्षो से किये जा रहे धर्मान्तरण के कारण बड़ी संख्या में जनजाति समाज (वनवासी) के बंधु ईसाई बन चुके थे। बांसवाडा परियोजना द्वारा प्रारम्भ से ही क्षेत्र में धर्मान्तरण के विरुद्ध जनजागरण किया जा रहा है। स्थानीय संतो (ज्यादातर वनवासी संत) के सानिध्य में संस्कृति दीक्षा के कार्यक्रम आयोजित किये जाते है, जिनमें हवन (यज्ञ) और धर्मसभा होती है। संस्कृति दीक्षा के इन कार्यक्रमों धर्मान्तरित परिवारों के सभी सदस्य भाग लेते हैं, और सामूहिक हवन करते है। संतो के प्रवचनो के बाद सभी लोग सामूहिक भोजन करते है। संस्कृति दीक्षा के कार्यक्रमों के माध्यम से अभी तक लगभग 48000 से अधिक जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ की “घर वापसी” हुई है।

समाज पर प्रभाव

दक्षिणी राजस्थान के बांसवाडा और डूंगरपुर जिलों की 78 प्रतिशत जनसंख्या जनजाति समाज (वनवासी) की है। अतः मिशनरीज एवं नक्सलवादियों द्वारा इन्हीं दोनों जिलों को लक्ष्य बनाकर अपनी गतिविधियां चलाई जा रही थी। बांसवाडा परियोजना ने भी बांसवाडा को केन्द्र बनाकर इन दोनों जिलो में सघन कार्य करने की योजना बनाकर वर्ष 1969 में कार्य प्रारम्भ किया । बांसवाडा परियोजना का 75 प्रतिशत कार्य बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर जिलों में ही है, जिसके कारण इन दोनो जिलो में निम्न प्रभावी परिणाम दिखाई देते है।

 

  1. हमारा धर्म हिन्दू है, और हमको अपने धर्म पर गर्व है, हम किसी भी कीमत पर अपना धर्म नही छोडेगें, और ना ही अपने किसी भाई को धर्म छोडने देंगे इस तरह के भाव का निर्माण क्षेत्र के जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ में पैदा हुआ है जिससे वह मिशनरीज द्वारा वर्षों से किये जा रहे धर्मान्तरण का प्रतिरोध करने लगे है ।
  2. नक्सलवादीयों एवं मिशनरीज द्वारा क्षेत्र में अलगाववाद का जहर फैलाकर पैदा की गई । अलग भीलिस्तान राज्य की मांग का समर्थन समाप्त हो गया है, नक्सलवादी अब क्षेत्र में अप्रांसगिक हो गये हैं।
  3. बांसवाडा परियोजना द्वारा संचालित विद्यालयों में अभी तक लगभग 80000 से अधिक छात्रों ने शिक्षण किया है, इनमें से लगभग 1200 छात्र वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, प्राध्यापक, शिक्षक, पटवारी, पुलिस आदि शासकीय सेवाओं में है।
  4. हिन्दू समाज का अन्य सम्प्रदाय के साथ हुये संघर्ष के समय सम्पूर्ण हिन्दू समाज सहज भाव से भारत माता मंदिर बासवाडा (बांसवाडा परियोजना का केन्द्रीय कार्यालय ) से मार्गदर्शन की अपेक्षा करता है और निर्णयों को स्वीकार भी करता है।
  5. विगत 25 वर्षो से बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों में पदस्थापित प्रशासनिक अधिकारीयों से उनके पदस्थापन के कार्यकाल में बांसवाड़ा परियोजना द्वारा संचालित विद्यालयों एवं छात्रावासों के माध्यम से जनजाति समाज (वनवासी) के मध्य किये जा रहे, शिक्षा, संस्कार और स्वावलम्बन के कार्यों को नजदीक से देखने हेतु आग्रह किया जाता है और वह कार्यों से प्रभावित होकर किये जा रहे कार्यों में पूर्ण सहयोग प्रदान करते है। सामाजिक विषयों पर भारत माता मंदिर बांसवाड़ा की राय को महत्व देते है । स्थानान्तरण के बाद भी ये अधिकारी सम्पर्क में रहते है ।
  6. शिक्षा, संस्कार, स्वावलम्बन एवं ग्राम विकास के मूल मंत्र के साथ कार्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिये जनजाति समाज (वनवासी) को सहभागी बनाकर बंधुत्व भाव के साथ अपन गई कार्य पद्धति के कारण बासंवाडा परियोजना में कार्यरत लगभग 95 प्रतिशत कार्य इसी क्षेत्र के जनजाति समाज (वनवासी) के है। परियोजना में कार्य करते हुए 68 कार्यताओं का संघ शिक्षा वर्ग हुआ है ।
  7. बांसवाडा परियोजना की कोई भी योजना निःशुल्क (गोकुलम को छोड़कर) नही है। विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के लिए सहयोग (फीस) राष्ट्रीय आंदोलनो, भजन मण्डली, हनुमान जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा, कुंऐ गहरे करवाने आदि जितने भी कार्य चल रहे है उन सभी कयों में स्थानीय जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ की सहभागिता रहती हैं, फलस्वरू- बांसवाडा परियोजना द्वारा संचालित कार्यों पर होने वाले व्यय का लगभग 70 प्रतिशत स्थानीय जनजाति समाज (वनवासी) के सहयोग से प्राप्त होता है।