बांसवाडा परियोजना द्वारा संचालित विद्यालयों और छात्रावासों में रहकर पढाई कर चुके छात्रों का एक दिवसीय पूर्व छात्र सम्मेलन वर्ष 2013 से किया जा रहा है। पूर्व छात्र सम्मेलनों में डाक्टर, इंजीनियर कॉलेज व्याख्याता, शिक्षक एडवोकेट, पटवारी, पुलिस विभाग, कृषक और निजी व्यवसाय आदि में कार्यरत पूर्व छात्र उपस्थित रहते है। कई पूर्व छात्र बांसवाडा परियोजना कार्यकर्ता एवं सहयोगी के रूप में कार्य कर रहे है।
राष्ट्रीय मुद्दो पर किये जाने वाले आन्दोलनों एवं कुंभ के समय बांसवाडा परियोजना के कार्यकर्ता जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओं को आदोलन के विषय में विस्तार से जानकारी देते है और उनको इसमें भाग लेने के लिये प्रेरित करते है। कार्य व कार्यकत्ताओं के प्रति विश्वास होने के कारण वे (वनवासी) राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेते है। वर्ष 1989 में आयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए पहली कार सेवा में स्वयं का किराया देकर भाग लेने से शुरू हुआ यह क्रम, 1992 में राममंदिर निर्माण की दूसरी कार सेवा, जम्मू में श्राइन बोर्ड की भूमि (अमरनाथ) का आंदोलन, मण्डला (म.प्र) में आयोजित शबरी कुंभ आदि आन्दोलनों में भाग लेते हुये मई 2016 में उज्जैन कुम्भ में समरसता स्नान में 2370 आदिवासी (वनवासी) बंधुओं, माताओं ने भाग लिया। अभी तक 20000 से अधिक जनजाति समाज (वनवासी) के बंधु और माताएँ राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेने के साथ साथ प्रमुख तीर्थस्थानों की तीर्थयात्रा का लाभ ले चुके है। कार्यक्रम से वापस आकर ये सभी लोग अपने समाज के लोगों को आन्दोलन के सम्बन्ध में एवं रामजन्मभूमि, कृष्णजन्मभूमि, काशी विश्वनाथ, वृन्दावन के मंदिरों, इलाहाबाद, हरिद्वार के कुम्भस्नान और स्वर्णमंदिर (अमृतसर) आदि तीर्थो के बारे में अपने अनुभव बताते है, और उनको भी धर्म का काम करने के लिये कहते है। अब ये सभी (स्त्री, पुरूष) अपने गांव में ईसाई पादरियों द्वारा किये जा रहे धर्मान्तरण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
जनजाति समाज के बंधुओं की कार्य में सहभागिता के लिये आवश्यक है कि प्रमुख कार्यकर्त्ताओं के उनसे इतने आत्मीय एवम् विश्वसनीय सम्बन्ध विकसित हो कि वह स्वयं की और समाज की समस्याओं के सम्बन्ध में निसंकोच होकर बातचीत कर सके और इसलिये उनके सुख दुःख में शामिल होना आवश्यक है, और इसके लिए परियोजना के कार्यकर्ताओं ने पहल करते हुये 2006 में अकाल की स्थिति में जनजाति समाज के 950 काश्तकारों के सहभागी बनकर उनके कुऐं गहरे करवाये। कार्यकर्ताओं के माध्यम से जनजाति समाज (वनवासी) के बन्धुओं को नगद फसल बौने एवं गौ पालन के लिये प्रेरित करना, परिवार के सदस्य की बीमारी के समय के सरकारी चिकित्सालयों में चिकित्सा की व्यवस्था करवाना, आवश्यकता होने पर मरीज को जयपुर, उदयपुर, अहमदाबाद, भेजाज की उचित व्यवस्था करवाना, सरकारी कार्यालयों एवं पुलिस थानों में उचित काम करवाने के लिये आने वाली परेशानियों में उनकी मदद करने से जनजाति समाज के बंधुओ का विश्वासंठन (भारत माता मंदिर बांसवाडा) के प्रति बढ़ रहा है, और वह भारत माता मंदिर बासवाड से स्वयं को जोड़ने में गर्व अनुभव करता है।
बहुआयामी बांसवाडा परियोजना द्वारा बड़े स्तर पर संचालित भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रकल्पों की सफलता कार्यकर्ताओं द्वारा समर्पित भाव से काम करने के कारण ही सम्भव हो पा रही है, इसलिये संगठन के संचालन का दायित्व निर्वहन कर रहे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की यह जिम्मेदारी है कि क्षेत्र में कार्य करने वाले इन कार्यकर्ताओं की सम्भाल भी पारिवारिक भाव से हो ।
बांसवाड़ा परियोजना में कार्यरत लगभग सभी कार्यकर्ता जनजाति समाज (वनवासी) के है, और गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि के है। इसलिये इनको शादी, बीमारी, बच्चों की पढ़ाई एवम् मकान मरम्मत कराने जैसी पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिये अपने ही समाज के किसी सक्षम व्यक्ति से 10-15 प्रतिशत मासिक ब्याज पर मजबूरी वश पैसा लेना पडता था। भारी भरकम ब्याज के कारण कार्यकर्ता का कर्ज मुक्त होना बड़ा कठिन था, जिसके कारण अधिकतर कार्यकर्ता आर्थिक दबाव में रहते थे। वर्ष 1999 में विषय के ध्यान में आने के बाद तुरन्त ही निर्णय किया गया कि कार्यकर्ता कर्ज मुक्त होना चाहिये। रीति नीति तय करके कार्यकर्ता को कर्ज चुकाने के लिये संस्था द्वारा ब्याज मुक्त ऋण (लोन) दिया गया। भविष्य में भी पारिवारिक दायित्वों के कारण कार्यकर्ता पुनः कर्ज के दबाव में नही आये इसके लिये संस्था द्वारा व्यवस्था निर्मित कर सामान्य ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने की स्थाई व्यवस्था की गई है।
क्षेत्र में कार्य को तीव्र गति से विस्तार देने के लिये निर्णय किया गया कि प्रवासी कार्यकताओं के पास प्रवास करने के लिये स्वयं का वाहन होना चाहिये। अतः रीति-नीति तय करके कार्यकर्ता को स्वयं की मोटर सायकल खरीदने के लिये 25 प्रतिशत की सब्सिडी (सहयोग) संस्था की तरफ से दी जाती हैं, शेष 75 प्रतिशत राशि कार्यकर्ता को स्वंय देनी होती है, लेकिन यह राशि कर्ता के पास नही होती है अतः इस राशि की व्यवस्था भी संस्था द्वारा कम व्याज दर ऋण कार्यकर्ता को करवा दी जाती है। इस निर्णय के कारण लगभग सभी प्रवासी यकत्ताओं के स्वयं की मोटर साईकिल है। और इस कारण समाज में इनका (कार्यकर्ता) सम्मान भी बदल । प्रवास के लिये वाहन एवं प्रवास व्यय दिये जाने के कारण सभी प्रवासी कार्यकर्ता महीने सतन 20-22 दिन प्रवास करते है।
कार्यकर्ताओं के आचार, व्यवहार के कारण संस्था (बांसवाडा परियोजना, भारत माता मंदिर • जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ का विश्वास बढे इसके लिये कार्यकर्ताओं का विशेष प्रशिक्षण वर्ग एवं प्रवासी कार्यकर्ताओं की दो दिवसीय पाक्षिक बैठक (महिने में दो बार), प्रति माह निश्चित दिनांक को होती है। जिससे कार्यकर्ता का बौद्धिक स्तर, संगठन कौशल व आत्मविश्वास बढता है। इन्ही कार्यकर्ताओं के माध्यम से शिक्षा, संस्कार, स्वावलम्बन व ग्राम विकास के मूल मंत्र के साथ बांसवाडा परियोजना का कार्य निरन्तर प्रगति करता जा रहा है।
बांसवाड़ा परियोजना द्वारा संचालित कार्यों को विगत वर्षो में जगतगुरु शंकराचार्य वासुदेवानन्दजी, महामण्डलेश्वर अवधेशानन्दजी, राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदासजी, साध्वी ऋतुम्भराजी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प.पू. स्व. कुप. सी सुदर्शन, पं.पू. मोहन जी भागवत, मा. भैयाजी जोशी, मा. मधुभाई कुलकर्णी, मा. इन्द्रेशजी, मा. हस्तीमलजी मा. सुहासराव जी, मा. कृष्ण गोपाल जी, मा. सुरेश जी, मा. अजीत जी महापात्र विश्व हिन्दू परिषद के श्रद्धेय स्व. श्री अशोक जी सिंहल, मा. प्रवीण भाई तोगडिया, मा. राघव रेड्डी, मा. चम्पतराय जी, मा. दिनेश जी, मा. विनायक जी देशपाण्डे, मा. धर्मनारायण जी, मा. मोहन जी जोशी, मा. जुगल किशोर जी, मा. स्वदेश पाल जी, मा. सुधांशु जी पटनायक, मा. महावीरजी, मा. स्व. श्री जगन्नाथ जी गुप्ता, मा. फतेचन्द जी शामसुका, मा. नरपतसिंहजी शेखावत एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री व. श्री भैरो सिंह जी शेखावत एवं वसुन्धरा राजे ओर बांसवाड़ा परियोजना के कार्यों के लिये, सहयोग करने वाले श्रीमान जयप्रकाश जी अग्रवाल (सूर्या फाउण्डेशन), श्रीमान लक्ष्मीनिवास जी झुन्झुनवाला (एल. एन.जे. ग्रुप), श्रीमान, आर.एल तोषनीवाल जी (बासंवाडा ● सिटॅक्स) श्रीमान सुभाष कपूर (स्टील वर्ल्ड), श्रीमान् विमल जी लाठ (कोलकाता), श्रीमान रमेश जी जैन (जयपुर), श्रीमान् जीतूभाई भंसाली (मुम्बई), श्रीमान् सुरेशजी भारवानी (मुम्बई), श्रीमान दिलीप जी मेहता (मुम्बई) श्रीमति अरुणा जी आचार्य (मुम्बई), श्रीमान सुरेश जी सिंघवी (मुम्बई), श्रीमान मदन जी पुंगलिया (जोधपुर), श्रीमान नवीन जी केड़िया (भिलाई), श्रीमान रमेश जी (रायपुर) द्वारा प्रत्यक्ष क्षेत्र में आकर कार्य को देखकर आर्शीवाद प्रदान किया है। बद्धेय अशोक जी सिंहल का बांसवाडा परियोजना के कार्यों को विशेष स्नेह न आर्शीवाद प्राप्त था, और वह कहते थे कि बांसवाडा परियोजना तो मेरी प्रयोगशाला है।
जनजाति समाज (वनवासी) के प्रत्येक व्यक्ति के मन में धर्म की भावन अधिक मजबूत हो और उन्हें अपने हिन्दू धर्म पर स्वाभिमान (गर्व) हो इसके लिये वह निल अर्चना करें, इस विचार के क्रियान्वयन के लिये वर्ष 2015 में तीन चरणों में (41 दिन, 1 और 6 दिन की) “यज्ञ अनुष्ठान यात्रा” आयोजित की गई । 478 गांवों में हवन (य कार्यक्रमों में 53281 जनजाति समाज (वनवासी) के स्त्री, पुरुष और बच्चों ने यज्ञ में अ दी। सभी यज्ञ कार्यक्रमों को विधि विधान से सम्पन्न कराने की कार्यवाही जनजाति समाज के युवकों द्वारा ही करवाई गई। बांसवाडा परियोजना द्वारा क्षेत्र में संचालित विद्यालयों में महीने की पहली एकादशी को विद्यालय परिवार एवं ग्रामवासी मिलकर सामूहिक हवन (यज्ञ) करते हैं। कृष्णजन्माष्टमी पर विद्यालयों में कृष्ण सजाओं प्रतियोगिता एवं दही हाण्डी (मटकी फोड़ के कार्यक्रम आयोजित होते है। इन कार्यक्रमों से प्रेरित होकर जनजाति समाज के लगभग 40 गांवो में दही हाण्डी (मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाने लगा है।
हिन्दू संस्कृति में संतो का एक विशिष्ट स्थान है, हिन्दू समाज संतो के गुणदोषों को देखे बिना उन पर अपनी श्रद्धा रखता है, और यह हिन्दू समाज का एक वैशिष्टय भी है। राष्ट्रीयता, धार्मिकता व सामाजिक समरसता के उद्देश्यों से अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति बाहुल्य क्षेत्रों में साध्वी ऋतम्भरा जी, विजयकौशल जी महाराज, छोटे मुरारी बापू, हरिओमशरणदास जी महाराज एवं स्थानीय संतो के श्रीमुख से भागवत और रामकथा के आयोजन किये गये । इन कथाओं में 5000 से 25000 स्त्री पुरूषों की उपस्थिति रहती थी। सामाजिक समरसता के लिये वह प्रयोग काफी सफल रहा है।
जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ को प्रारम्भ से ही बताया जाता रहा है कि हिन्दू समाज गाय को गौ माता इसलिये मानता है कि वह हमारे परिवार के लालन-पालन के लिये उपयोगी है। गाय का बछडा (बैल) खेती के काम आता है, स्वास्थवर्धक दूध के अलावा गाय का गोबर और मूत्र भी चिकित्सा के लिये उपयोगी है, इसलिये गाय हमारे परिवार का महत्वपूर्ण आर्थिक आधार है। इसको समझाने के उद्देश्य से कार्यकर्ताओं और क्षेत्र के जनजाति समाज (वनवासी) के बंधुओ को अपने संगठनों द्वारा संचालित गौशालाओं में ले जाकर प्रत्यक्ष दिखाया जाता है कि गाय के दूध, दही और घी से होने वाली आय और गाय के गोबर से बायो गैस एवं खाद के अतिरिक्त अगरबत्ती, साबुन, गौअर्क इत्यादि उपयोगी सामग्री बनाकर परिवार की आय बढ़ा सकता है। वर्ष 2015 में बांसवाडा परियोजना द्वारा बांसवाडा जिले के मुनियांखूटा गांव में एक गौशाला प्रारंभ की गई है और इसको गौ उत्पादन की प्रयोगशाला के रूप में विकसित करने की योजना है, ताकि इस क्षेत्र के अधिकतम वनवासी बंधु इस गौशाला में आकर प्रत्यक्ष रूप से गाय के महत्व को समझ सके, और गोपालन कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सके।
भारत माता मंदिर बांसवाडा इस क्षेत्र के जनजाति समाज (वनवासी) एवं सम्पूर्ण हिन्दू समाज का श्रद्धा का केन्द्र बनता जा रहा है, भविष्य में यह सम्पूर्ण हिन्दू समाज का प्रमुख श्रद्धा केन्द्र व मार्गदर्शन का केन्द्र बनें, इसके लिये प.पू.सत्यमित्रानन्द जी महाराज द्वारा हरिद्वार में स्थापित भारत माता मंदिर की शैली में मंदिर बनाने की योजना पर कार्य प्रारम्भ किया है। इस मंदिर में हिन्दुओं के आराध्य देवों, महापुरूषों, मातृशक्ति के साथ ही जनजाति समाज (वनवासी) के संत एवं समाज सुधारको को प्रतिष्ठापित किया जायेगा।